Tuesday, 14 June 2016

भाग्य और परिश्रम

जीवन अनिश्चिताओं का नाम है
जो कभी भी पलट जाए, भाग्य उसी का नाम है।
परिश्रम जीवन का कायाकल्प है,
विषम परिस्थितियों में, ये ही इक्मात्र विकल्प है।
भाग्य भरोसे सब ठीक होगा,
यदि ऐसा लगता है, तो ये सिर्फ आपका भ्रम है।
भाग्य भरोसे आप सिर्फ बैठ सकते हैं,
पर जो चलना सिखाता है, वो कठिन परिश्रम है।

स्वर्ण पात्र में खाने वालों
राज भोग कब तक खाओगे?
नर्म बिछौना निद्रा हेतु
चैन से कब तक सो पाओगे?
भाग्य तुम्हारा अभी प्रबल है
पर कब तक इसके गुण गाओगे?
भाग्य भरोसे बैठ कहो तुम,
कब तक यूँ ही इतराओगे?
ये बदलेगा करवट जिस दिन,
उस दिन तुम मुँह की खाओगे!!!
चेतोगे जितना जल्दी तुम,
उतना जल्दी बच पाओगे।
जीवन के रण में तुम बोलो,
ये कठिन चुनौती ले पाओगे?
साथ छोड़ कर भाग्य का तुम
राह परिश्रम की चल पाओगे?
देकर अपना लहू पसीना,
कंटक गले लगा पाओगे?
लिखकर भाग्य स्वयं का तुम क्या
भाग्य विधाता बन पाओगे?
सफलता परिश्रम से जिस दिन
तुम आलिंगन कर पाओगे?
जीवन के रण के शूरवीर
उसी दिन तुम कहलाओगे।

पीयूष सिंह

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