मेरी ये कविता उन सभी साधारण व असाधारण लोगों को समर्पित है जिनकी वीरागाथायें हमें प्रेरित करती हैं निर्भीकता से कर्तव्य पथ पर बढ़ने की और हर परिस्थिति में डट कर खड़े रहने की।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
हाथ में लेकर चले तिरंगा भारत माता के ये लाल,
आगे कर दी अपनी छाती बनकर सारे देश की ढाल,
पहले देश की आन बाद में, अपनी जान ये आती है,
इसको लेकर रत्ती भर भी मन में कभी संशय न हो।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
अपने अपने खेल में दिग्गज, इन पर भारी जिम्मेदारी,
प्रतिद्वंदी मुँह की खायेगा, निश्चित हो ये अबकी बारी,
नाम देश का ऊँचा करना, बस इतना सा अरमान है,
झोंक दो पूरा दम खम रण में, जय हो, पराजय न हो।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
मन में लेकर कठिन इरादा और मुख पर भोली मुस्कान,
हठ कर बैठा है वो मन में, तोड़ेगा प्रस्तर चट्टान
जो पहले दुर्गम था, हठ से मार्ग वहाँ बन आया है,
ऐसे ज़िद्दी की फिर बोलो कैसे जय जय न हो?
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
उद्यम से जो सिद्ध हैं करते अपने सारे कार्य अधूरे,
नींद उन्हें कहाँ आती है जब तक सब हो जाएँ न पूरे,
कैसी भी हों परिस्थितियाँ पर घुटने टेक नहीं सकते ये,
ऐसे उद्यमी का कहो! संभव कैसे, भाग्योदय न हो?
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
पीयूष सिंह
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
हाथ में लेकर चले तिरंगा भारत माता के ये लाल,
आगे कर दी अपनी छाती बनकर सारे देश की ढाल,
पहले देश की आन बाद में, अपनी जान ये आती है,
इसको लेकर रत्ती भर भी मन में कभी संशय न हो।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
अपने अपने खेल में दिग्गज, इन पर भारी जिम्मेदारी,
प्रतिद्वंदी मुँह की खायेगा, निश्चित हो ये अबकी बारी,
नाम देश का ऊँचा करना, बस इतना सा अरमान है,
झोंक दो पूरा दम खम रण में, जय हो, पराजय न हो।
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
मन में लेकर कठिन इरादा और मुख पर भोली मुस्कान,
हठ कर बैठा है वो मन में, तोड़ेगा प्रस्तर चट्टान
जो पहले दुर्गम था, हठ से मार्ग वहाँ बन आया है,
ऐसे ज़िद्दी की फिर बोलो कैसे जय जय न हो?
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
उद्यम से जो सिद्ध हैं करते अपने सारे कार्य अधूरे,
नींद उन्हें कहाँ आती है जब तक सब हो जाएँ न पूरे,
कैसी भी हों परिस्थितियाँ पर घुटने टेक नहीं सकते ये,
ऐसे उद्यमी का कहो! संभव कैसे, भाग्योदय न हो?
वीर वो होता है, जिसे रण में किसी का भय न हो।
पीयूष सिंह
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