Friday, 17 June 2016

जीवन को लकवा मार गया

खा गयी गरीबी बचपन को
मजबूरी निगल गयी स्वाभिमान को
भूख ने थोड़ी चोरी सिखा दी
हालात पी गए खुशियों को
और इस तरह पूरे जीवन को लकवा मार गया।

पीयूष सिंह

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