Saturday, 14 May 2016

एक मृतक का जीवन

नेत्र रिक्त हैं,
नीर से, स्वप्न से,
आशाओं से, इच्छाओं से,
पीड़ाओं से, संवेदनाओं से;
एक मृत सी जीवित काया
जिसमें जीवन मात्र साँसों का नाम है।
यूँ तो वह पुरुष कमाता भी और खाता भी है,
पर,
उसकी कमाई में जीवन का यथार्थ नहीं, सिर्फ जीवन है;
उसके भोजन में जीवन का स्वाद नहीं, सिर्फ जीवन है;
लक्ष्यहीन, दिशाहीन सी चल रही है
सिर्फ !!चल रही है....

पीयूष सिंह

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