यह ब्लाग मेरे उन तमाम अनुभवों और विचारों का संग्रह है, जो अब तक या तो मेरे हृदय में कहीं छुपे थे या तो फिर मेरी डायरी के पन्नों में कहीं खो गये थे। यहाँ अपने विचार लिखने से मुझे असीम प्रसन्नता और संतोष होगा कि मैं अपनी बातें कहने में समर्थ हुआ। इस ब्लाग पर आने वाले सभी मेरे आगंतुक हैं। सभी आगंतुकों को मेरा प्रणाम और यहाँ समय देने के लिये धन्यवाद।
Sunday, 15 March 2009
एक वार्ता कलम से
मैं :-
ऐ मेरी कलम!
इस समूचे विश्व में
जहाँ लगता है कि सर्वत्र प्रकाश है
पर असलियत ये है कि
प्रकाश के पीछे घोर तिमिर है।
जहाँ लगता है कि सर्वत्र हँसी है
पर असलियत ये है कि
हँसी के पीछे घोर विषाद है।
जहाँ लगता है कि सर्वत्र विश्वास है
पर असलियत ये है कि
विश्वास के पीछे घोर छल है।
जहाँ अपनी असलियत छुपाए
मुखौटाधारियों का साम्राज्य है।
जहाँ भीड़ तो है पर फिर भी
सुन्सानियत का माहौल है।
ऐसे विश्व में मुझे खुशी है कि
मेरे साथ तू है।
निर्जीव है पर जीवितों से अच्छी,
निश्छल, प्रकाशमान, हँसमुख और असली
मेरी कलम।
मेरे हाथों के स्पर्शमात्र से ही
हृदय के तार तुझसे जुड़ जाते हैं
सारा दुख और विषाद जो हृदय में है
तेरी स्याही में घुल जाता है
और फिर तू उसे कागज़ पर लाकर
स्वयं तो समझती है,
समूचे विश्व को समझाती है।
धन्यवाद है तुझको
जो मुझे जानती है, समझती है
धन्यवाद है तुझको
जो तू मेरे साथ है।
कलम :- .
मित्र! ऐ मेरे मित्र!
क्यों करता है मुझे धन्यवाद
मुझे पाना तो तेरा अधिकार है।
मैं साथ हूँ उन सब के
जो साफ हैं, हँसमुख हैं
मुखौटों से रहित हैं
पर फिर भी अकेले हैं।
आखिर सबको एक साथी की ज़रूरत है।
जब तक तू न बदलेगा,
मैं तेरे सानिध्य रहूँगी।
-पीयूष सिंह
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