यह ब्लाग मेरे उन तमाम अनुभवों और विचारों का संग्रह है, जो अब तक या तो मेरे हृदय में कहीं छुपे थे या तो फिर मेरी डायरी के पन्नों में कहीं खो गये थे। यहाँ अपने विचार लिखने से मुझे असीम प्रसन्नता और संतोष होगा कि मैं अपनी बातें कहने में समर्थ हुआ। इस ब्लाग पर आने वाले सभी मेरे आगंतुक हैं। सभी आगंतुकों को मेरा प्रणाम और यहाँ समय देने के लिये धन्यवाद।
Wednesday, 25 March 2009
प्रेम
प्रेम यदि मिलन है तो,
प्रेम जुदाई भी है।
प्रेम यदि आगमन है तो,
प्रेम विदाई भी है।
प्रेम यदि पाना है तो,
प्रेम प्रतीक्षा भी है।
प्रेम यदि परिणाम है तो,
प्रेम परीक्षा भी है।
प्रेम यदि पाना है तो,
प्रेम कुछ खोना भी है।
प्रेम यदि हँसना है तो,
प्रेम कभी रोना भी है।
प्रेम यदि ईश्वर है तो,
प्रेम सच्ची आस्था भी है।
प्रेम यदि लक्ष्य है तो,
प्रेम वहाँ का रास्ता भी है।
प्रेम यदि सर्वस्व समर्पण है तो,
प्रेम सम्पूर्ण अधिकार भी है।
प्रेम यदि मीठे बोल हैं तो,
प्रेम कभी तकरार भी है।
प्रेम यदि इच्छा पूर्ति है तो,
प्रेम त्याग भी है।
प्रेम यदि सांसारिकता है तो,
प्रेम बैराग भी है।
प्रेम यदि जादू है तो,
प्रेम यही मंत्र हर बार है,
प्रेम यदि जीवन है तो,
प्रेम बस एक बार है।
Sunday, 22 March 2009
पागलों का विश्व
इक पागल, पागल से कहे
कि मैं पागल,
ये सब जानें और सब कहें
पर तू पागल !
ये सब जानें और कोई न कहे।
क्यों? क्योंकि,
सब डरते हैं सत्य के बाहर आने से
सब डरते हैं भेद खुल जाने से।
अरे!
जो देखकर अंधा हो,
जो सुनकर बहरा हो,
जो बोलकर गूँगा हो,
जो हाथ पैर होकर लाचार हो,
वो पागल ही तो है।
कोई मोह माया में पागल,
कोई ऊँच नीच में पागल,
कोई पागल है कुछ पाने में,
कोई पागल है कुछ बचाने में,
कोई हृदय से पागल,
कोई अपने दर्जे से पागल,
अरे सब के सब पागल ही तो हैं।
लेकिन हम!
हम मोह माया से दूर,
हम ऊँच नीच से दूर,
हम खोने पाने से दूर,
हम सुख दुख से दूर,
हम मस्ती के पुजारी
अनभिज्ञ, अन्जान
पागल हैं तुम्हारी नजरों में।
अरे हमारे लिए तो पागलखाने हैं,
पर तुम्हारा पागलखाना कहाँ है?
शायद ये समूचा विश्व !
हा! हा! ये पागलों का विश्व ! ! !
पीयूष सिंह
कि मैं पागल,
ये सब जानें और सब कहें
पर तू पागल !
ये सब जानें और कोई न कहे।
क्यों? क्योंकि,
सब डरते हैं सत्य के बाहर आने से
सब डरते हैं भेद खुल जाने से।
अरे!
जो देखकर अंधा हो,
जो सुनकर बहरा हो,
जो बोलकर गूँगा हो,
जो हाथ पैर होकर लाचार हो,
वो पागल ही तो है।
कोई मोह माया में पागल,
कोई ऊँच नीच में पागल,
कोई पागल है कुछ पाने में,
कोई पागल है कुछ बचाने में,
कोई हृदय से पागल,
कोई अपने दर्जे से पागल,
अरे सब के सब पागल ही तो हैं।
लेकिन हम!
हम मोह माया से दूर,
हम ऊँच नीच से दूर,
हम खोने पाने से दूर,
हम सुख दुख से दूर,
हम मस्ती के पुजारी
अनभिज्ञ, अन्जान
पागल हैं तुम्हारी नजरों में।
अरे हमारे लिए तो पागलखाने हैं,
पर तुम्हारा पागलखाना कहाँ है?
शायद ये समूचा विश्व !
हा! हा! ये पागलों का विश्व ! ! !
पीयूष सिंह
Sunday, 15 March 2009
एक वार्ता कलम से
मैं :-
ऐ मेरी कलम!
इस समूचे विश्व में
जहाँ लगता है कि सर्वत्र प्रकाश है
पर असलियत ये है कि
प्रकाश के पीछे घोर तिमिर है।
जहाँ लगता है कि सर्वत्र हँसी है
पर असलियत ये है कि
हँसी के पीछे घोर विषाद है।
जहाँ लगता है कि सर्वत्र विश्वास है
पर असलियत ये है कि
विश्वास के पीछे घोर छल है।
जहाँ अपनी असलियत छुपाए
मुखौटाधारियों का साम्राज्य है।
जहाँ भीड़ तो है पर फिर भी
सुन्सानियत का माहौल है।
ऐसे विश्व में मुझे खुशी है कि
मेरे साथ तू है।
निर्जीव है पर जीवितों से अच्छी,
निश्छल, प्रकाशमान, हँसमुख और असली
मेरी कलम।
मेरे हाथों के स्पर्शमात्र से ही
हृदय के तार तुझसे जुड़ जाते हैं
सारा दुख और विषाद जो हृदय में है
तेरी स्याही में घुल जाता है
और फिर तू उसे कागज़ पर लाकर
स्वयं तो समझती है,
समूचे विश्व को समझाती है।
धन्यवाद है तुझको
जो मुझे जानती है, समझती है
धन्यवाद है तुझको
जो तू मेरे साथ है।
कलम :- .
मित्र! ऐ मेरे मित्र!
क्यों करता है मुझे धन्यवाद
मुझे पाना तो तेरा अधिकार है।
मैं साथ हूँ उन सब के
जो साफ हैं, हँसमुख हैं
मुखौटों से रहित हैं
पर फिर भी अकेले हैं।
आखिर सबको एक साथी की ज़रूरत है।
जब तक तू न बदलेगा,
मैं तेरे सानिध्य रहूँगी।
-पीयूष सिंह
Saturday, 14 March 2009
पीयूष और कविता
पीयूष मृत्यु पर वरदान है
कविता जीवन का नाम है।
पीयूष शांति शीतलता है
कविता निश्छल निर्मलता है।
पीयूष शक्ति से ओत प्रोत है
कविता उसी शक्ति का स्रोत है।
पीयूष कविता का आधार है
कविता पीयूष का सार है।
पीयूष भले ही अपवाद है
पर कविता पीयूष का स्वाद है।
पीयूष विष पर जीत है
कविता मनमीत है।
पीयूष विचारों की खान है
कविता इनका उद्गम स्थान है।
पीयूष सत्य की कुछ बूँदे है
कविता स्वीकारती जिन्हें आँख मूँदे है।
पीयूष विस्तृत पर रिक्त आकाश है
कविता,रिक्तता की पूर्ति हेतु एक जीवित तलाश है।
पीयूष सिंह
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