मंद मंद मंद मंद
चल रहा है अंतर्द्वंद।
बात हो कर्तव्य की,
या गर्त में भविष्य की,
या फिर अधूरे सत्य की,
सब फन उठाये डसने को तैयार,
बुरे समय का तीक्ष्ण प्रहार,
खुले पंखों की उड़ान सा नहीं है आनन्द।
मंद मंद मंद मंद,
चल रहा है अंतर्द्वंद।
मेरा मुझसे छीन लिया,
धनी से मुझको दीन किया,
भावों से भी विहीन किया,
मैं मैं न हो पाया, तो मेरा होना बेकार,
बुरे समय का तीक्ष्ण प्रहार,
किससे और कैसा है ये प्रतिद्वंद?
मंद मंद मंद मंद,
चल रहा है अंतर्द्वंद।
गली गली लुटता है चैन,
मन में द्वेष है कटु है बैन,
आत्मा मर गयी, निर्लज्ज हुए नैन,
मानव लिख रहा है मानवता का उपसंहार,
बुरे समय का तीक्ष्ण प्रहार,
इंसानियत के कपाट सारे, आज हुए बंद।
मंद मंद मंद मंद,
चल रहा है अंतर्द्वंद।
पीयूष सिंह
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