हैसियत नहीं मेरी सितारों को देख सकने की,
बहुत दिनों बाद नींद आई तो थोड़ी हिम्मत कर ली
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आज मैं लुट गया कि छिन गए मेरे शब्द मुझसे,
सारे बाज़ार में ये बिक रहें हैं किसी और के नाम से।
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ये ज़िन्दगी है साहब, निभानी ही पड़ेगी,
वरना अब जीने में रक्खा क्या है?
कोरी आँखों ने नहीं देखें हैं सपने,
जो सच न हो सकें, उन सपनों में रक्खा क्या है?
जब छीन लिया सब कुछ तब तो पूछा नहीं,
अब तरस भरी खोखली सांत्वना में रक्खा क्या है?
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मैं डर जाता हूँ जब आइना देखता हूँ
कहीं फिर से न पूछ ले वो सवाल पेंचीदे
मांग न ले हिसाब ज़िन्दगी का,
खुशियाँ जो खर्च हो गयी उनकी रसीदें!!!
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ज़िन्दगी, ये तेरी जिरह करने की आदत अजीब है
खुशियाँ मिलती हैं इक लम्बी बहस के बाद।
पीयूष सिंह
बहुत दिनों बाद नींद आई तो थोड़ी हिम्मत कर ली
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आज मैं लुट गया कि छिन गए मेरे शब्द मुझसे,
सारे बाज़ार में ये बिक रहें हैं किसी और के नाम से।
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ये ज़िन्दगी है साहब, निभानी ही पड़ेगी,
वरना अब जीने में रक्खा क्या है?
कोरी आँखों ने नहीं देखें हैं सपने,
जो सच न हो सकें, उन सपनों में रक्खा क्या है?
जब छीन लिया सब कुछ तब तो पूछा नहीं,
अब तरस भरी खोखली सांत्वना में रक्खा क्या है?
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मैं डर जाता हूँ जब आइना देखता हूँ
कहीं फिर से न पूछ ले वो सवाल पेंचीदे
मांग न ले हिसाब ज़िन्दगी का,
खुशियाँ जो खर्च हो गयी उनकी रसीदें!!!
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ज़िन्दगी, ये तेरी जिरह करने की आदत अजीब है
खुशियाँ मिलती हैं इक लम्बी बहस के बाद।
पीयूष सिंह
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