चाल मेरी बेतरतीब है, शायद
अभी ठोकरें नहीं खाई इतनी मैंने कि मैं चलना सीख जाऊँ।
कहते हैं अब भी संभल जाओ, पर शायद,
अभी गिरा नहीं मैं इतनी बार कि मैं संभलना सीख जाऊँ।
कहते हैं लोग कि छोड़ दो अपने आप को,
अभी और कितना बदलूँगा, कि मैं बदलना सीख जाऊँ।
क्यों दूसरों को देख कर सीख नहीं लेता,
अभी और कितना छला जाउँगा कि मैं छलना सीख जाऊँ।
चलना, संभलना, बदलना, छलना, अब बस भी करो
या तो ये मुझे छोड़ दें, या तो मैं इनसे निकलना सीख जाऊँ।
पीयूष सिंह
अभी ठोकरें नहीं खाई इतनी मैंने कि मैं चलना सीख जाऊँ।
कहते हैं अब भी संभल जाओ, पर शायद,
अभी गिरा नहीं मैं इतनी बार कि मैं संभलना सीख जाऊँ।
कहते हैं लोग कि छोड़ दो अपने आप को,
अभी और कितना बदलूँगा, कि मैं बदलना सीख जाऊँ।
क्यों दूसरों को देख कर सीख नहीं लेता,
अभी और कितना छला जाउँगा कि मैं छलना सीख जाऊँ।
चलना, संभलना, बदलना, छलना, अब बस भी करो
या तो ये मुझे छोड़ दें, या तो मैं इनसे निकलना सीख जाऊँ।
पीयूष सिंह