नभ में घोर अंधकार के बाद
जो प्रभात आई है,
उसके पीछे तुम हो।
धरती पर सूखी बयार के बाद
जो वृष्टि आई है,
उसके पीछे तुम हो।
बाग में पतझड़ के बाद
जो हरयाली आई है,
उसके पीछे तुम हो।
बस्ती में वर्षों की सुन्सानियत के बाद
जो खु्शी की झंकार आई है,
उसके पीछे तुम हो।
इतने बुरे स्वप्नों के बाद
जो अच्छी नींद आई है,
उसके पीछे तुम हो।
होठों पर विषाद के बाद
जो हँसी आई है,
उसके पीछे तुम हो।
जीवन में इतने कंपन के बाद
जो स्थिरता आई है,
उसके पीछे तुम हो।
वर्षों की निष्क्रियता के बाद
जो नव क्राँति आई है,
उसके पीछे तुम हो।
कल्पना के सागर में शांति के बाद
जो नव तरंग आई है,
उसके पीछे तुम हो।
जीवन में इतनी तलाश के बाद
जो कविता आई है,
उसके पीछे तुम हो।
पीयूष सिंह
Piyush, you are doing nice work. I don't think many people are aware of this talent of yours. Congratulations!
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