वो महिला
सिर पर उठाए
कुछ ईंट अैर पत्थर
उस बड़ी इमारत से देखो
तो पूरी चींटी सी लगती है
चींटी : जो कभी भी मानव द्वारा
कुचल दी जाती है
पर वो चल रही है
इसलिए नहीं
कि किसी ने उसे कुचला नहीं
बल्कि इसलिए
कि उसमें दृढ़ता है विश्वास है।
वो महिला
बरतन माँज रही है
और कुछ टुकड़े रोटी के
इक्ट्ठे कर रखे हैं
शायद कोई भूखा है।
वो महिला
कपड़े धो रही है
और पुराने कपड़ों की चाह है
शायद कोई नंगा है।
वो महिला
आज शय्या पर लेटी है
उसका एकमात्र अपना
जिसके लिए उसने रोटी जुटाई
कपड़े जुटाए
चींटी से मानव बनाया
वो आज उसे छोड़
मानवों में व्यस्त है।
वो महिला
चींटी थी पर अफसोस न था
लेकिन अब,
उसका दृढ़ता और विश्वास
कुचला गया है।
वो महिला
अब मर चुकी है।
पीयूष सिंह
सिर पर उठाए
कुछ ईंट अैर पत्थर
उस बड़ी इमारत से देखो
तो पूरी चींटी सी लगती है
चींटी : जो कभी भी मानव द्वारा
कुचल दी जाती है
पर वो चल रही है
इसलिए नहीं
कि किसी ने उसे कुचला नहीं
बल्कि इसलिए
कि उसमें दृढ़ता है विश्वास है।
वो महिला
बरतन माँज रही है
और कुछ टुकड़े रोटी के
इक्ट्ठे कर रखे हैं
शायद कोई भूखा है।
वो महिला
कपड़े धो रही है
और पुराने कपड़ों की चाह है
शायद कोई नंगा है।
वो महिला
आज शय्या पर लेटी है
उसका एकमात्र अपना
जिसके लिए उसने रोटी जुटाई
कपड़े जुटाए
चींटी से मानव बनाया
वो आज उसे छोड़
मानवों में व्यस्त है।
वो महिला
चींटी थी पर अफसोस न था
लेकिन अब,
उसका दृढ़ता और विश्वास
कुचला गया है।
वो महिला
अब मर चुकी है।
पीयूष सिंह
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