Tuesday, 28 December 2010

क्षण भर जीवन


हृदय में अंकित,
रक्त रंजित
एक चित्र है।

जिसमें मानव तड़पता हुआ
अंश भर जीवन को ललकता हुआ
दीख पड़ता है।

मृत्यु दो कदम पर है
पर जीवन की इच्छा चरम पर है
बस कुछ साँसें शेष हैं।

हो कोई चमत्कार
पुनः हो प्राणों का संचार
लेकिन प्राण हैं कि रुकते नहीं।

कटे अंग पड़े थे छिन्न भिन्न
देखकर उनको मन होता खिन्न
लोग लड़ रहे थे।

ढूँढ़ता है दोष अपना
क्यों टूटा उसका सपना
ये लहू लुहान बदन पड़ा है।

वो तो बस यूँ ही जा रहा था
अपने घर को जा रहा था
आज उसे नौकरी मिली थी।

उसके पास एक बच्चा दौड़ता आया
''मुझे बचाओ'' वह चिल्लाया
लोग उसे दौड़ा रहे थे।

उसने बच्चे को शरण दी
और लोगों ने उसे मृत्यु चरण दी
लोगों ने उसे काट दिया।

वह बेसुध गिरा पड़ा है
नहीं पास कोई खड़ा है
प्राण जाने को हैं।

आँखों में खुशियों की झिलमिल चमक
कुछ और देर जीने की ललक
वह खुशियाँ बाँटना चाहता है।

वह सोचता था पर्व होगा
सबको उस पर गर्व होगा
पर सब मिट गया।

पर्व मातम बन गया
खुशियों का दौर थम गया
आँसू ही आँसू होंगे।

क्षण भर की साँसें अब रुक गईं
खुली पलकें भी अब झुक गईं
वह मर चुका है।

पीयूष सिंह

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