'बापू मुझे खिलौना ला दो
गाड़ी, घोड़ा, गुड़िया ला दो
गाड़ी हो चार पहिए वाली
बटन दबाकर चलने वाली
घोड़ा हो लकड़ी का जिसमें
बैठे झूला झूले जिसमें
गुड़िया कोई सुनैना ला दो
बापू मुझे खिलौना ला दो।
पप्पू मेरा दोस्त है जो
खेले रोज़ है इनसे वो
मैं जो कहूँ कि मुझे दिखा दो
मुझसे कह दे हाथ हटा लो
मैं बस यूँ ही रहूँ देखता
और वो मजे से रहे खेलता।
सारे नहीं तो एक ही ला दो
बापू मुझे खिलौना ला दो।''
बेटा तू कितना मासूम
नहीं अभी तुझे मालूम
कि तेरा बाप कबाड़ी है
किस्मत तेरी उजाड़ी है।
टीन के डिब्बे,शीशी बोतल
बनें हैं तेरा आज और कल
अन्जान बेचारा कहता ला दो
बापू मुझे खिलौना ला दो।
माँग रहा मेरा बच्चा मुझसे
बचपन सीधा सच्चा मुझसे
पर मैं कबाड़ में पलने वाला
बचपन को उसके दलने वाला
सोच रहा क्या दूँ जवाब
मैं कैसे उसका करूँ हिसाब
गूँज रहा कानों में ''ला दो!
बापू मुझे खिलौना ला दो।''
मैं कबाड़ी कबाड़ लाया
वहीं से ढूँढ़कर "कार" लाया
बड़ों के लिए वो बेकार थी
पर मेरे बच्चे के लिए वो "कार" थी
देखकर उसको हुआ वो स्थिर
मैंनें कहा ''लो खेलो, फिर -
कभी नहीं अब कहना ला दो,
बापू मुझे खिलौना ला दो।''
गाड़ी नहीं ये वैसी थी
न उसके मित्र के जैसी थी
आकर पास वो रोने लगा
और मुझसे वो कहने लगा
''अरे ये तो चलती भी नहीं
क्यों तुम्हें वैसी मिलती भी नहीं
मुझको तुम वैसी ही ला दो
बापू मुझे खिलौना ला दो।''
पता नहीं क्यों क्रोध है आया
मैंने उस पर हाथ उठाया
बच्चा मेरा रोने लगा
आँसू, इच्छा धोने लगा
शांत है वो अब कुछ नहीं कहता
इच्छाओं को मन में ही रखता
नहीं कभी अब कहता ला दो
बापू मुझे खिलौना ला दो।